Sunday 27 March 2016

यहां होली पर अपने आप ही जलने लगती हैं लकडिय़ां, जानें क्या है रहस्य


इन लकडिय़ों को कोई चुराने की हिम्मत भी नहीं करता, आप भी जानें भारत में कहां है ये जगह
होलिका दहन पर आप सबने ही लकडिय़ां जलाई होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में ही एक ऐसी जगह भी है जहां हर साल होली पर अपने आप ही लकडिय़ां जल उठती हैं। इंदौर में बागली से 8 किमी दूर जटाशंकर गांव के पास नयाखूंट के जंगल में ये जगह है।
यहां हर साल होली पर अपने आप आग लग जाती है और हजारों क्विंटल लकडिय़ां जलकर खाक हो जाती है। ग्रामीण इसे होली माल और होली टेकरी के नाम से पुकारते हैं। जंगल में इस जगह पर साल भर लोग अपनी इच्छा से लकडिय़ां डालते रहते हैं और होली के आते-आते ये लकडिय़ां हजारों क्विंटल तक पहुंच जाती हैं।
इसके पीछे मान्यता है कि जो व्यक्ति लकड़ी नहीं डालता, उसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हजारों क्विंटल ये लकडिय़ां चमत्कारी रूप से होली की रात में सुबह 4 से 5 बजे के बीच खुद ही जलने लगती हैं। इसके पास में ही नृसिंह भगवान का मंदिर है। लोगों का मानना है कि भूमि चमन ऋष्ज्ञि की तपोभूमि है। यहां से चंद्रकेश्वर व जटाशंकर की दूरी कम है और दोनों स्थान चमन ऋषि और जटायू की तपोभूमि होकर भगवान शंकर के प्राकृतिक जलाभिषेक तीर्थ हैं।
लोगों की मान्यता और तब बढ़ गई जब सारे जंगल में आग लग गई और इस जगह की सारी लकडिय़ां सुरक्षित रहीं। होली टेकरी की लकडिय़ों को जब हटाया गया तो वहां पिछले साल जली हुई लकडियों की राख दिखी। इन लकडिय़ों को कोई चुराने की हिम्मत भी नहीं करता।

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